jueves, 11 de diciembre de 2014

DECLARACÍON DO CIAGPI.

POÑAMOS EN PRACTICA AS IMPORTANTES DECISIONS DO ENCONTRO INTERNACIONAL DO CIAGPI DO 27 E 28 DE SETEMBRO EN ITALIA! 
¡NOVOS PASOS IMPORTANTES!
   
O Comité Internacional de Apoio a Guerra Popular na India ten adoptado tres tarefas:
*Publicación de todas-las intervencions e mensaxes ao Encontro, lo antes posible – Realizado
*Un novo Día Internacional de Apoio a Guerra Popular nos vindeiros meses
Tense acordado tres Días Internacionais de Acción : 29, 30 e 31 de Xaneiro do 2015 , contra a Operación Cacería Verde, contra o réxime fascista de  Modi, en defensa da vida e das condicions no que atopanse os presos políticos e en apoio a Guerra Popular na India
29 de Enero:
Contra as compañías indias e os negocios económicos da burguesía imperialista india.
30 de Enero
Diante das embaixadas e consulados da India
31 de Enero
Reunions en apoio a Guerra Popular na India
*Intensificar a preparación da Delegación Internacional a India
Conversaciones o 13 de Decembro en Italia impulsarán sua preparación
Outras decisions:
Unir a campaña en pro dos presos políticos na India a todas-las campañas en curso en favor dos presos políticos no mundo
Novas declaracions e accions no mundo -Brasil-Francia-Italia-Palestina- contemplarán a participación do CIAGPI – As conversacions do 13 de Decembre en Italia establecerán un calendario.
Desenrrolar iniciativas específicas nas fábricas de empresas multinacionais da India, particularmente en Europa, para crear un lazo internacionalista entre os traballadores dos países imperialistas e os traballadores indios.
29 de xaneiro – Un dos tres días internacionais de acción no mundo
Aceptar a propuesta de apoiar un llamamento as mujeres para unha ponte entre o movemento das mulleres e a loita das mulleres na Guerra Popular
Un paso importante se llevará  a cabo el año que viene



Comité Internacional de Apoyo a la Guerra Popular en la India
Decembro 2014

lunes, 8 de diciembre de 2014

INDIA: Chamado do PCI (maoísta) en apoio a loita da clase obreira.

Press statement- support the All India protests of Working class 5 Dec. 2014- OSC CPI (maoist)


भारत की कम्युनिस्ट पार्टी  (माओवादी)
ओड़िशा राज्य कमेटी
प्रवक्ता- शरतचंद्र माझी    प्रैस स्टेटमेंट दिनांक- 18 नवंबर 2014
5 दिसंबर 2014 को मजदूर प्रदर्शनों का हम समर्थन करते हैं
नरेंद्र मोदी की साम्राज्यवाद, बड़े पूंजीपतियों के हक में किये गये 'श्रम सुधारों' के विरुध लड़ाकू संघर्षों का निर्माण करो. शासक वर्गिय व दलाल ट्रेड युनियनों से सावधान रहो.
जीना है तो मरना सीखो - कदम-कदम पर लड़ना सीखो.
5 दिसंबर 2014 को देश की विभिन्न ट्रेड युनियनों, मजदूर युनियनों ने नरेंद्र मोदी की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ, श्रम कानूनों में पूंजीपतियों के हक में बदलावों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनों का निर्णय लिया है. हमारी भाकपा (माओवादी) की ओड़िशा राज्य कमेटी पूरी तरह से देश के मजदूरों के साथ खड़ी है. उनकी तमाम जायज मांगों का समर्थन करती है. ओड़िशा के तमाम किसानों, कर्मचारियों, व्यापारियों, छात्र-बुद्धिजीवियों से अपील करते हैं कि अपने-अपने काम बंद करके मजदूरों के प्रदर्शनों, रैलियों, जुलूसों में भागीदारी करे.
संशोधन बिल 2014 (एपरेंटिटिस) लोकसभा में 10 अक्तुबर को पास हो गया है। जुलाई में फेक्ट्री एक्ट, लेबर एक्ट भी पास हे चुके हैं। इसके बाद महिलाओं का रात की पालियों (शिफ्टों) में काम करना लागू हो जायेगा। ओवर टाईम के घंटे दो गुने हो जायेंगे। कोई भी कंपनी मजदूरों से 12 घंटों तक काम ले सकेगी। कंपनियां स्थाई मजदूरों की जगह ज्याद से ज्यादा प्रशिक्षू मजदूरों को काम पर रख सकेगी।
मोदी सरकार ने देशी-विदेशी लुटेरों के लिए “अच्छे दिन” लाने के अपने वादे को निभाने के लिए उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा, यानी देश में मज़दूरों के अधिकारों की थोड़ी-बहुत हिफ़ाज़त करने वाले श्रम क़ानूनों को भी किनारे लगाने की शुरुआत कर दी है।
करीब 25 वर्ष पहले जब उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को बड़े पैमाने पर लागू करने की शुरुआत हुई तभी से पूँजीपतियों की संस्थाएँ और उनके भाड़े के क़लमघसीट पत्रकार और अर्थशास्त्री चीख़-पुकार मचा रहे हैं कि श्रम क़ानूनों को 'लचीला' बनाया जाना चाहिये
श्रम क़ानूनों को लागू करवाने वाली संस्थाओं को एक-एक करके इतना कमज़ोर और लचर बना दिया गया है कि क़ानून के खुले उल्लंघन पर भी वे कुछ नहीं कर सकतीं। लेकिन इतने से भी पूँजीपतियों को सन्तोष नहीं है। वे चाहते हैं कि मज़दूरों को पूरी तरह से उनके रहमो-करम पर छोड़ दिया जाये। जब जिसे चाहे मनमानी शर्तों पर काम पर रखें, जब चाहे निकाल बाहर करें, जैसे चाहे वैसे मज़दूरों को निचोड़ें, उनके किसी क़दम का न मज़दूर विरोध कर सकें और न ही कोई सरकारी विभाग उनकी निगरानी करे।
अब देश के सारे बड़े लुटेरों ने (अडानी, अंबानी, टाटा, बिरला, जिंदल, मित्तल, एस्सार आदि) मिलकर मोदी सरकार बनवायी इसीलिए है ताकि वह हर विरोध को कुचलकर मेहनत की नंगी लूट के लिए रास्ता बिल्कुल साफ़ कर दे। अपने को ‘मज़दूर नम्बर 1’ बताने वाला नरेन्द्र मोदी फ़ौरन इस काम में जुट गया है।
मज़दूरों के लिए यूनियन बनाना और भी मुश्किल कर दिया गया है। मूल क़ानून के अनुसार किसी भी कारख़ाने या कम्पनी में 7 मज़दूर मिलकर अपनी यूनियन बना सकते थे। फिर इसे बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया। यानी किसी फैक्टरी में काम करने वाले मज़दूरों का कोई ग्रुप अगर कुल मज़दूरों में से 15 प्रतिशत को अपने साथ ले ले तो वह यूनियन पंजीकृत करवा सकता है। मगर अब इसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है। मतलब साफ़ है कि अगर फैक्टरी मालिक ने अपनी फैक्टरी में दो-तीन दलाल यूनियनें पाल रखी हैं तो एक नयी यूनियन बनाना बहुत कठिन होगा और फैक्टरी जितनी बड़ी होगी, यूनियन बनाना उतना ही मुश्किल होगा।
एक और ख़तरनाक क़दम के तहत इण्डस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 में संशोधन करके अब कम्पनियों को 300 या इससे कम मज़दूरों को निकाल बाहर करने के लिए सरकार से अनुमति लेने से छूट दे दी गयी है, पहले यह संख्या 100 थी। यानी अब किसी पूँजीपति को अपनी ऐसी फैक्टरी जिसमें 300 से कम मज़दूर काम करते हैं, को बन्द करने के लिए सरकार से पूछने की ज़रूरत नहीं है।
फैक्टरी से जुड़े किसी विवाद को श्रम अदालत में ले जाने के लिए पहले कोई समय-सीमा नहीं थी, अब इसके लिए भी तीन साल की सीमा तय कर दी गयी है। और बेशर्मी की हद यह है कि ये सब “रोज़गार” पैदा करने तथा कामगारों की काम के दौरान दशा सुधारने तथा सुरक्षा बढ़ाने के नाम पर किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि इससे ज़्यादा निवेश होगा तथा ज़्यादा नौकरियाँ पैदा होंगी। असल में कहानी रोज़गार बढ़ाने की नहीं, बल्कि पूँजीपतियों को मज़दूरों की लूट करने के लिए और ज़्यादा छूट देने की है। ये तो अभी शुरुआत है, श्रम क़ानूनों को ज़्यादा से ज़्यादा बेअसर बनाने की कवायद जारी रहने वाली है.
हम तमाम मजदूरों से अव्हान करते हैं कि वह मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की राह पर अपना आंदोलन तेज करें. अब तक शासक वर्गिय व दलाल ट्रेड युनियनों मजदूर आंदोलनों के साथ धोका ही किया है. केवल एक दिन की हड़ताल या प्रदर्शनों से मजदूरों को अपने असली हक नहीं मिल सकते, मजदूरों के श्रम की लूट नहीं मिट सकती. देश को साम्राज्यवाद, बड़े पूंजीपतियों व सामंतवादियों को उखाड़ कर ही आपकी सच्ची मुक्ति संभव है. माओवादी पार्टी आपसे आव्हान करती है कि उठो और पूरी व्यवस्था को चुनोती दे दो. ये कल कारखाने, फेक्ट्रियां, कंपनियां आपके खून पसीने बनी हैं, इन पर केवल और केवल आपका ही अधिकार है.
देश में आदिवासी-किसान हमारी पार्टी के नेतृत्व में अपने जल-जंगल-जमीन के लिये, साम्राज्यवाद, सांतवाद व दलाल नौकरशाह पूंजिपतियों को उखाड़ कर नव जनवादी भारत के निर्माण के लिये लोकयुध्द के पथ पर आगे बढ़ रही है. वह लड़ाई आपकी भी लड़ाई है. आपरेशन ग्रीनहंट के तीसरे चरण को चालू कर अपने ही देश की जनता पर मोदी ने नाजायज युध्द को और तेज कर दिया है. मोदी की का ग्रीनहंट हर उस व्यक्ति के खिलाफ है जो उसके खिलाफ बोलेगा, जो पूंजी की लूट के आड़े आयेगा, इसलिये यह आपके ऊपर भी युध्द है. हम पूरे मजदूर वर्ग से अपील करते हैं कि व्यापक रुप से एकजुट होकर इसका विरोध करे.
नरेंद्र  मोदी के सारी नाटकीय भाषणगिरी साम्राज्यवादी कारपोरेट घरानों का हित साधने वाली है. साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण की नीतियों को पहली सरकारों से ज्यादा अक्रामक रूप से लागू कर रही है. जनता से अपील है कि उसके मोहजाल में मत फसे. उसकी असलियत को पहचान कर उसकी जन विरोधी नीतियों का मुंहतोड़ जवाब दें.
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
प्रवक्ता
शरतचंद्र माझी
ओड़िशा राज्य कमेटी
भाकपा (माओवादी)

domingo, 7 de diciembre de 2014

INDIA: Emboscada do EGPL deixa 14 mortos e 15 feridos entre paramilitares perto de Raipur.





correovermello-noticias
Nova Delhi, 1.12.14
Según informan axencias internacionais, unha emboscada do Exercito Guerrilleiro Popular de Liberación, no distrito de Sukma no estado de Chhattisgarh, contra forzas da para-militar CRPF ha costado a vida a 14 efectivos gubernamentais, incluidos dous oficiais ao mando da unidade. Outros 15 efectivos resultaron feridos no mesmo combate. Non se reportan baixas nas forzas revolucionarias que capturaron un importante numero de armas automaticas equipamentos e munición das CRPF.
A unidade reaccionaria participaba nunha operación contra bases maoístas nos bosques do distrito de Sukma a 450 km da capital Raipur.

lunes, 6 de octubre de 2014

Inde : Une prison spéciale pour les prisonniers ’maoïstes’




Le département d’état en charge des prison a construit un bâtiment spécial dans le district de Gadchiroli (Maharashtra) pour les prévenus accusés d’avoir des liens avec la guérilla maoïste. Les travaux sont actuellement terminé, mais la prison n’est pas encore ouverte car le département a demandé des mesures de sécurité spéciales fournies par les forces paramilitaires. A terme, cette prison deviendra une prison spéciale pour les Naxalites. En plus de celle-ci, il est prévu la construction de prisons de ce type dans les districts de Washim, de Sindhudurga, de Jalgaon et de Nandurbar. Au cours de ces dernières années, des centaines de personnes ont été arrêtées par la police du Maharashtra pour leurs prétendus liens avec les maoïstes. La plupart ont finalement été libérés, faute de preuve, après de longs mois de détention préventive dans la prison centrale de Nagpur. D’après un avocat, une grande partie de ces prisonniers étaient et sont des militants luttant pour les droits des tribaux ou contre les expropriations. Des fonctionnaires du Anti-Terrorism Squad (ATS - Brigade Anti-Terroriste) n’ont eux pas caché l’objectif de la construction de ces prisons spéciales, affirmant que cela faisait longtemps qu’ils attendaient cette initiative, principalement parce que ces prisonniers exercent une influence sur les prisonniers communs. Un fonctionnaire haut placée de l’ATS a déclaré : ’Il est crucial d’avoir une prison spéciale. Nous avons vu que les Naxalites influencent leurs co-détenus avec leur idéologie. En fin de compte, leur objectif est d’absorber autant de personnes que possible de leurs groupes. Donc, une prison spéciale pour eux est un pas bienvenu dans la lutte contre les maoïstes’

martes, 30 de septiembre de 2014

Success for the International Meeting in Italy organized by ICSPWI!


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27-28Setp14EN


In the next days the ICSPWI meeting official declaration will be issued.

Lal salaam to PCI (Maoist) !
Comrades, people of India you are not alone!
Long live 10th Anniversary!
Long live people’s war in India!

A large and representative participation from different countries in the world !
A High internationalist unity in the support to people’s war and CPI(Maoist) !
A new international day of support people’s war in India has been decided!
The organisation of the International delegation to India advances !

International  Committee Support People’s War  India

28 september 2014

Charu Mazumdar – O caminho da revoluçom na Índia. (Ateneu Prolétario Galego)



Charu Mazumdar revoluçomNaxalbari
O Himalaia, situado no continente asiático é a cordilheira mais alta do planeta, possui dez das catorze cumes que superam os 8000 metros no mundo e se estende por Butám, Nepal, China e a Índia.
Nas estribaçons destas imensas montanhas encontra-se a aldeia de Naxalbari, no estado de Bengala ocidental, considerado como um dos bastions do maoísmo na Índia e onde em 1967 se iniciou e se estendeu a guerra popular que a Fraçom Vermelha (liderada por Charu Mazumdar) fundida com as massas de camponeses pobres e sem terra empreenderam contra o poder semi-feudal o estado Índio e as forças repressivas que o sustentavam.
46 anos depois o movimento revolucionário da Índia surgido da pequena aldeia de Naxalbari conhecido precisamente como Naxalitas polos feitos acontecidos naqueles anos, com o PCI (Maoísta) e o exército popular de libertaçom (EGPL) à cabeça têm presença- a diferentes níveis- em 15 dos 29 estados que componhem a Índia e controlam o 35% do seu território.
Precisamente neste 2014 cumpren-se 10 anos do nascimento do PCI (Maoísta)
culminando assim um processo no que se unirom cinco organizaçons comunistas, contando coa fusom do Partido Comunista da Índia (Marxista-Leninista) Naxalbari no mes de maio deste ano. Por isto queremos fazer a nossa aportaçom ao intento de familiarizar ao proletariado politicamente mais adiantado coa experiência da luita de classes em povos onde o revisionismo foi combatido dumha maneira eficaz pola vanguardia proletária. Podendo criar desta maneira umha linha política justa, o que levou ao o avance do movimento revolucionário, do partido proletário, do novo poder revolucionário, com um povo armado para poder ser donos das suas próprias vidas, para poder criar um novo tipo de sociedade.
O fascista governo índio considera ao PCI (Maoista) e ao EGPL o maior inimigo e principal perigo (com toda raçom) para a sua existência.
Múltiples informes das autoridades índias dam a alarma sobre a grande força e o medre em número e eficácia das forças revolucionárias. Os serviços de inteligência índios nom param de redigir informes sobre a atividade dos Naxalitas em cada vez mais departamentos. No aumento das suas forças que já cifram entre 25.000 a 30.000 pessoas combatentes armados (entre o EGPL e as milícias), entre 50.000 e 60.000 os militantes do partido. O que os converte (quantitativa e qualitativamente) numha das maiores forças revolucionárias do mundo atual e num referente mundial para o proletariado de qualquer povo.
Militante comunista
Charu Mazumdar nasce em Siliguri (Bengala) em 1918, no seio de umha família na que o o pai vinha de umha tradiçom de luitas democráticas das que tinha participado ativamente.
Com vinte anos Charu abandona a universidade e integra-se no Congresso Nacional Índio, que por aquele entom ainda nom estava no poder e era uma das principais forças opositoras à invasom colonial britânica, cuja organizaçom provincial de Bengala meses antes tinha tentando unir à maioria muçulmana e à minoria hindu* em umha mesma plataforma socialista e laica ante a oposiçom da asa direitista encabeçada por Ghandi.
Como militante deste partido toma contacto com o movimento obreiro da cidade de Bidi no que se organiza e participa das suas luitas.
Tempo depois rompe com o Congresso Nacional Índio e passa ao Frente Camponês, organizaçom setorial do PCI (Partido Comunista da Índia) onde respeitado e querido polos trabalhadores do campo será nomeado membro do comité de distrito. Tras o estourido da II guerra mundial o PCI é ilegalizado, passando à clandestinidade por primeira vez.
Em 1946 translada-se ao norte de Bengala para se unir ao movimento Tebhaga, movimento armado que aglutinava aos setores mais resolutos e avançados politicamente daquela época, o que marca a sua militância fazendo-lhe ter uma visom mais profunda sobre a revoluçom e os métodos para a alcançar.
Durante umha temporada trabalha nas plantaçons de té no distrito de Darjeelin até que é detido e encarcerado passando os próximos três anos em prisom.
Em 1954 junto da sua companheira Lila translada-se a Sliliguri, a sua cidade natal, que será o centro de operaçons de ambos durante um tempo.
Dirigente revolucionário
A degeneraçom revisionista do PCI fai que junto de milhares de camaradas abandone o partido e constituam o Partido Comunista da Índia (Marxista) PCM com o que terminam enfrentados polas posturas eleitoralistas e outros desvios com parte da direçom, o que lhes leva a conformar uma corrente dentro do próprio PCM, fam-se chamar a Fraçom Vermelha.
Fraçom Vermelha que apoiados principalmente polo campesinado pobre e sem terra dirige os levantamentos populares que partem da aldeia de Naxalbari, e que em três meses conseguem tomar o poder em mais de 2000 povos no distrito de Dajerliin.
Em 1969 fruto da fusom com as massas operárias e camponesas, e dos confrontos com o revisionismo praticado polo PCI e o PCM, nasce na clandestinidade o Partido Comunista da Índia Marxista-Leninista, PCI (M-L)
do que Charu Mazumdar é nomeado secretário geral, continuando com a estratégia da Guerra Popular, que quase dois anos depois se estende desde Bengala Ocidental aos estados de Andhara Pradesh, Bihar, Orissa, Madhya, Utta Pradesh e kerala.
Ante o avanço do movimento Naxalita no campo, a explosom das luitas obreiras e estudantis por todas as cidades Bengala Ocidental e outros povos da Índia onde os estudantes deixaram vazios os colégios e universidades para se unir à revoluçom Naxalita, enquanto os ataques contra as instituiçons estatais e os assaltos a armazéns para destribuir alimentos entre a populaçom esfameada se sucediam, a oligarquia Índia apoiada no Partido do Congresso e outros partidos reaccionários que sustentavam o sistema (incluídos os denominados comunistas), alentada económica e ideologicamente polo governo dos Estados Unidos lança uma campanha repressiva a gramde escala com o objetivo de frear ao movimento revolucionário e eliminar aos seus quadros políticos garantindo-se assim umha derrota do mesmo a curto- meio prazo. Durante este período assassinam a mais de 10.000 homens e mulheres, entre obreiros, estudantes e camponeses, detendo e torturando a um número ainda maior.
Detençom e assassinato de Charu Mazumdar
Por aquele entom a obsessom do estado Índio é dar caça a Charu Mazumdar ao que considera principal inimigo do estado Índio. Conseguem dete-lo em julho de 1972, na cidade de Calcuta, sendo transladado a prisom, onde permanece em isolamento durante dez dias sem ter acesso a um advogado, a um médico ou poder contactar com algum familiar. Segundo a versom oficial morre o 28 desse mesmo mês às quatro da madrugada, no mesmo calabozo de Lal Bazar onde o tinham sequestrado, conhecido polas massas como um dos piores centros de tortura. O seu cadáver é transladado por um cordom policial até um crematório onde queimam o seu corpo.
Depois da morte de Charu Mazumdar, desaparecidos e encarcerados boa parte dos quadros políticos Maoístas, -só nos cárceres de Bengala Ocidental havía 18000 presos políticos – a Guerra Popular sofre um sério retrocesso, perdendo quase todas as zonas libertadas onde se tinham imposto os comités populares. A partir de entom o movimento revolucionário dos povos da Índia atravessará por momentos críticos. A linha política traçada por Mazumdar, o seu pensamento político será decisivo para que com o trascorrer dos anos o Movimento Naxalita poida ir se depurando e ressurgindo. Na atualidade o legado político deixado por Charu Mazumdar fai parte do ADN das organizaçons comunistas que levam adiante a guerra popular contra o estado Índio e que fam que a estrela que surgiu na aldeia de Naxalbari brilhe com mais força que nunca para milhonss de oprimidos em todo mundo.
Pensamento político e prática revolucinária
O Maoísmo como guia
O pensamento político de Charu Mazumdar, como o de milhons de revolucionários e revolucionárias asiáticas daquela época, estivo marcado pola vitória na guerra civil revolucionária do Exército popular de libertaçom chinês sobre as tropas reaccionárias de Chiang Kai -Sheck , a instauraçom da república popular e a posterior revoluçom cultural proletária.
Mazumdar sentia grande admiraçom polo pensamento político do presidente Mao Tse Tung, ao que o considerava um mestre, e ao maoísmo como parte fundamental e desarrolhada do Marxismo-Leninismo.
Promoveu o seu estudo e aprofundamento entre os quadros e militantes comunistas, entre as massas que participavam dos movimentos revolucionários, assim como a sua aplicaçom prática adequada às particularidades e a situaçom concreta da luita de classes que se desenvolvia nos diferentes povos e regions da Índia.
Combate contra o revisionismo
Umha das premissas fundamentais para o avanço do movimento revolucionário e para a criaçom do partido comunista de novo tipo era o combate contra o revisionismo, nom só contra o que se desenvolvia na Índia, encabeçado principalmente polo Partido Comunista da Índia (Marxista) PCM, que embora estava muito desacreditado entre os militantes mais avançados e combativos, gozava ainda de um importante apoio entre as massas camponesas e entre o proletariado do cinturom industrial e mineiro dos distritos de Asamor a Dragapal.
A luita contra o revisionismo devia produzir-se também a escala mundial “pois o revisionismo é inimigo da revoluçom em todas as partes do mundo”.
Charu Mazumdar foi um dos maiores críticos das políticas levadas a cabo polos dirigentes do PCUS e do estado soviético de meados dos anos cinquenta em adiante. Aos que definia como colaboradores do imperialismo e “líderes e foco do revisionismo mundial”. Julgava que era responsabilidade dos comunistas da Índia desenmascarar ante as massas o papel reaccionário e anti classista desta liderança, pois a influência deste foco revisionista tinha penetrado à maioria de partidos comunistas do mundo, que tinham deixado de ser um instrumento útil para o avanço da revoluçom a nível mundial, e que submergidos na política de alianças com a burguesia, carentes de vida entre as massas e sem discussom interna, eram incapazes de assumir às novas forças nascentes (como o Naxalismo na Índia) que removia as consciências de milhoes de oprimidos em todo o sudeste asiático e que deixavam em entre dito as velhas ideias e as políticas liquidacionistas que praticavam estes partidos.
Mas para Charu Mazumdar o combate contra o revisionismo devia livrar-se tamém no interior do movimento revolucionário da Índia e as suas organizaçons, pois considerava que no mesmo ainda permaneciam ideias, erros e deviaçons que se tinham ido arraigando no estilo de trabalho, na sua conceçom organizativa e em muitas esferas mais. Conceçons de carácter economicista- sindicalista e eleitoralista que se vinham promovendo por uma parte do PCM e que estavam a gerar desde fazía tempo enormes tensons e confrontos entre parte da direçom e a corrente da Fraçom Vermelha liderada por Mazumdar, que considerava que se estavam a trairzoar os princípios polos que tinha sido criado o partido, e que estas políticas só serviam para ancorar ao movimento dentro dos limites da legalidade burguesa e que entorpeciam e frustravam o desenvolvimiento da luita de classes.
“ Assim a revoluçom democrática terá que avançar luitando necessariamente contra a democracia burguesa, isto é contra instituiçons como as eleiçons e o parlamento. Portanto nom podemos utilizar nunca estas instituiçons para levar adiante a revoluçom democrática”
O nacionalismo hindu
O nacionalismo hinduísta cimentado sobre a base da identidade hindu (hindutva) tem como objetivo a construçom de umha “sociedade hindu pura”, recuperando o “glorioso passado” que consideram truncado pola invasom muçulmana no ano 1000 de nossa era e a posterior colonizaçom britânica no século XIX.
Para eles a Índia está considerada como terra santa e o islám ou o cristianismo como religions estrangeiras, já que as suas terras santas estám no estrangeiro.
Na atualidade contam com toda umha rede de organizaçons políticas, sindicais, estudantis ou de mulheres, apoiadas polo grupo paramilitar Swayamsevak Sangh (Associaçom Nacional de Voluntários), todos eles agrupados no Jana Party (Partido do Povo Índio) ou no Partido do Congresso.
Este nacionalismo abertamente reaccionário e racista foi-se gestando durante a colonizaçom britânica da Índia e a proclamaçom da sua independência no ano 1947, pois a nova administraçom que as classes dominantes tinham posto em mans do Partido do Congresso era incapaz de responder às demandas democráticas das massas e as suas luitas aumentavam e se radicalizavam por todas partes. Além disso a proclamaçomn da independência da Índia agudizou ainda mais as contradiçons entre o estado Índio e os povos que luitavam polo reconhecimento da sua identidade. Para 1958 naçons como Nagaland, Assam, Manipur ou Caxemira estavam completamente militarizadas por umas forças armadas às que se lhe tinham outorgado poderes especiais para combater aos movimentos independentistas, o que inevitavelmente levou a todo o tipo de torturas e atrocidades indiscriminadas sobre a populaçom destas comunidades.
É neste contexto que se desenvolvia o nacionalismo hindu, alentado polas classes dominantes e estimulado desde o Partido do Congresso pola ministra de informaçom e futura primeira-ministra Indira Ghandi (umha das suas principais ideologas nessa época), vam fomentando o desprezo por outras etnias e nacionalidades, estendendo a ideia de que a populaçom hindu (que compom o 80% da Índia) poderia terminar convertendo-se em uma minoria, ou que o povo Naga espalhados entre a Índia e Myanmar representam umha continuaçom do colonialismo polo feito de que parte da sua populaçom professe a religiom cristã.
Em 1965 promovem a lei pola que tratam de impor o hindi como a única língua oficial dos estados que componhem a Índia, provocando distúrbios e revoltas por todo o noroeste e algumas zonas do sul onde o hindi é uma língua completamente estranha, e que acabará com a matança de 70 pessoas na cidade de Madras, no estado de Tâmail Nadu, fronteiriço con Sri Lanka ,onde a sua populaçom se expressa maioritariamente na linguagem tâmil.
Charu Mazumdar considerava de vital importância para os comunistas e revolucionários índios combater este nacionalismo ao que definia como a maior arma que tinham as classes dominantes naqueles momentos.
“Ao erigir consigna da unidade nacional e outras mais pretendem preservar a exploraçom do capital monopolista”.
“Por conseguinte, esta consigna de unidade é reaccionaria e os marxistas devem se opor a ela. A consigna Caxemira é parte inalienável da Índia foi lançada polas classes dominantes em benefício do saqueio. Nengum comunista deve apoiá-la. É um dever fundamental dos marxistas defender o direito à autodeterminaçom de toda nacionalidade oprimida”.
Charu Mazumdar entendia que os revolucionários hindus deviam de prestar apoio aos movimentos de libertaçom nacional, mas que eram os comunistas destas nacionalidades os que tinham que os encaminhar para posiçons revolucionárias até criar os seus próprios partidos comunistas e avançar polo caminho da Guerra Popular. Qualquer aliança ou unidade com o resto dos povos da Índia nom poderia vir de nengumha imposiçom, senom que teria que surgir de umha nova consciência, produto do desenvolvimento das luitas contra o estado Índio e o imperialismo.
A construçom do partido
Charu Mazumdar sabía que sem a existência do partido revolucionário de novo tipo, expressom independente e consciente das classes oprimidas da Índia, assentado na luita contra o revisionismo e na aplicaçom do Marxismo-Leninismo-Maoismo como teoria científica transformadora da realidade, o triunfo da revoluçom estava condenado a fracassar. Polo que junto de outros camaradas, quadros políticos comunistas, se entregou em todos os terrenos à consecuçom desta necessidade.
Para Charu Mazumdar o partido (em umha sociedade semi-colonial e semi feudal, como era a Índia daqueles anos) devia partir da aliança obreiro-camponesa, (dirigidos pola classe obreira) sendo o campesinado pobre e sem terra a força principal para poder levar adiante a revoluçom. Mas esta aliança nom se podia levar a cabo aplicando os velhos métodos dos partidos tradicionais. “Isso é polo que um partido revolucionário nom pode ser levantado a partir do que é velho”.
A ideia de que o partido podia ser construído através da unidade dos comunistas, juntando às diversas organizaçons que se denominavam Marxistas-Leninistas, ou Maoístas em umha sóa sigla e se proclamar vanguarda, levava inevitavelmente ao ilhamento com as massas, reduzindo a sua atividade a configurar listas para participar nas eleiçons ou organizar círculos de debate (1).
Considerava como tarefa fundamental dos comunistas elevar a consciência de obreiras e camponeses, formando quadros políticos que difundissem e aplicassem a linha política revolucionária do partido entre as massas, educando às mesmas na ideia da revoluçom e a luita contra o estado, atraindo a setores cada vez mais amplos para esta causa, impedindo deste modo que centrassem o trabalho na participaçom nos sindicatos, nas associaçons legais de camponeses ou nas eleiçons, que só sementavam o pessimismo entre as massas e serviam aos interesses do revisionismo e as classes dominantes da Índia.
Nesse momento histórico o partido devia estar aberto à incorporaçom de outras capas da sociedade, como a juventude e os estudantes procedentes da pequena burguesia que a metade da década do sessenta tinham estendido e radicalizado as suas luitas por toda a Índia. Tinha que ficar claro que a hegemonia política dentro do partido deveria estar sempre em mans de obreiros e camponeses e que o apoio destas classes nom se podia limitar a um simples apoio moral, pois o descontentamento social contra as políticas reaccionárias do Partido do Congresso tinha estourado em forma de resitências espontâneas no campo e nas cidades, e a consigna do partido era intensificar estas luitas e poder chegar a lhes dar direçom, com o que os novos membros tinham que estar dispostos a fazer sacrifícios, distribuir a propaganda clandestina, organizar redes urbanas de apoio à guerrilha, ser enviados ao campo como combatentes ou qualquer outra cousa que o partido considerasse que era necessário nesse momento.
“O único caminho marxista para educar-se que Lenin e o presidente Mao nos ensinaram é a luita de classes. Só ao calor desta luita pode um comunista ser autêntico e brilhante. Só a luita de classes é a verdadeira escola para os comunistas.”
O inicio da Guerra Popular
Em um território com mais de 500 milhons de habitantes onde 400 deles viviam em zonas rurais, a principal força para o avanço da revoluçom tinha que partir do campesinado e dentro deste o campesinado pobre e sem terra, Que era o que devia impor a sua hegemonia política sobre o resto do movimento camponês.
“Pois só eles som a força mais revolucionária entre as classes camponesas.”
Baixo a direçom do Partido Comunista e assentado sobre a base da luita armada para a tomada do poder “A revoluçom na Índia só podia triunfar tomando o caminho da Guerra Popular Prolongada.”
Mas nom em todos os estados e regions da Índia a luita de classes se desenvolvia ao mesmo ritmo para poder dar início à guerra, enquanto, había que trabalhar para fortalecer as organizaçons partidárias, ir madurando a consciência das massas ao mesmo tempo que se estendia a ideia da revoluçom, deixando claro que nengumha reforma por muito progressista em que esta se apresentasse poderia resolver os problemas fundamentais que aqueixabam ao povo trabalhador Índio, isto só poderia vir do confronto com o estado e a destruiçom das instituiçons reaccionárias.
Mas para poder iniciar o caminho da Guerra Popular, avançar nela e defender as conquistas que o movimento revolucionário tinha conseguido, era necessário contar com um grande número de armas. E o movimento Naxalita precariamente armado e que nom contava com a ajuda de ninguém, impulsionou a campanha pola consecuçom de fusis e que em um princípio começou com a utilizaçom de armas de fabricaçom caseira que os camponeses utilizarom para assaltar os povoados onde as autoridades feudais guardavam o armamento que tinham para intimidar às massas. Também se formaram pequenos grupos de militantes clandestinos encarregados de surpreender às forças repressivas e confiscar -lhes o armamento. Processo no que nasce o novo poder nas pricipais bases de apoio.
Umha vez superada esta primeira fase, com as organizaçons camponesas podendo desenvolver a luita armada baixo a direçom do partido, a resistência alcançou umha etapa qualitativamente superior que podemos sintetizar como o passo da resitência expotânea (2), a resistência estratégica das massas armadas e organizadas conscientemente. É o inicio da guerra popular. A etapa na que o campesinado revolucionário, organizado em milícias populares foi ganhando territórios expulsando aos inimigos de classe e criando zonas libertadas abolindo o velho poder feudal e criando comités revolucionários, expressom do novo poder.
—————————–
*A independência da Índia no ano 1947 supôs a divisom de Bengala, a parte oridental (atual Bangladesh) de maioria muçulmana foi anexada a Paquistám, enquanto a parte ocidental de maioria hindu ficou baixo a jurisdiçom do estado Índio.
1. O partido nom se cria simplesmente sumando pessoas comunistas e que tenhem qualidades individuais. O partido cria os seus próprios militantes, com qualidades que nom acadariam no trabalho individual. O partido cria qualidades colectivas o que nom som umha simples suma ecléctica de qualidades individuais.
As pessoas criam o organismo colectivo como umha relaçom social objetiva da que formam parte, mas essa relaçom social transforma o comportamento, sipcologia, etc, das mesmas pessoas ate o ponto que podemos dizer que os transforma em pessoas novas. Umhas pessoas que nom seriam como som sem esse caldo de cultivo.
2. Quando falamos de resistência expontânea nom quere dizer que seja irreflexiva, nem nem que nom siga reglas táticas, nem que nom fo-se discutida. É expotânea porque nom conta com objetivos a longo praço, dos que as açons dum determinado momento nom som mais que um meio cara outros objetivos a longo praço como é o fortalecimento do novo poder, o equilibrio estratégico, a toma do poder em todo o territorio, a destruçom do estado, a construçom dumha sociedadade socialista e dumha sociedade comunista.

sábado, 27 de septiembre de 2014

CONDEMN THE CLAMP DOWN ON THE PROGRAMME OF FORUM FOR ALTERNATIVE POLITICS ON 21 SEPTEMBER 2014!



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COMMITTEE FOR THE RELEASE OF POLITICAL PRISONERS
185/3, FOURTH FLOOR, ZAKIR NAGAR-110025
21 September 2014

The Secretary of the Writers Union … Stat[ed] that the people Had forfeited the confidence of the government And could win it back only By redoubled efforts. Would it not be easier In that case for the government To dissolve the people And elect another? –Bertolt Brecht

CONDEMN THE CLAMP DOWN ON THE PROGRAMME OF FORUM FOR ALTERNATIVE POLITICS ON 21 SEPTEMBER 2014!

CONDEMN THE WHITE TERROR OF THE TRS GOVERNMENT!

CONDEMN THE ARRESTS OF MORE THAN 800 PEOPLE DENYING IN THE NAME OF LAW AND ORDER!

RIGHT TO ASSEMBLE AND RIGHT TO FREEDOM OF EXPRESSION ARE FUNDAMENTAL RIGHTS!

The Telangana Rashtra Samiti (TRS) led Telangana government which has promised ‘Golden Telangana’ to the people of the region has flattered to deceive. Notwithstanding the song and dance of a different arrangement that will bring succor to the long standing demands of the people of Telangana, TRS has deceived the people on the fundamental principle that marks a democratic polity—the right to freedom of expression and the right to assemble and express freely the socio-political aspirations of the people.
For any polity to thrive these are the fundamental safeguards that should be protected and promoted at any cost and incidentally the TRS government have proved that they fear these very principles which enhance the initiative and imagination of the people! Like every other seat of political power in the Indian subcontinent, the TRS government too have seen to it that the constitutional guarantees to the people of the subcontinent be violated with impunity!
The wee hours of 21 September 2014 saw the Telangana state machinery showing its real anti-people repressive face as it went on an arresting spree of people’s activists, leaders of people’s organizations, intellectuals, students, people’s lawyers, civil libertarians—whosoever was suspected to be / to have reached Hyderabad to participate in the seminar / public meeting at the Sundarayya Vignana Kendram under the banner of Forum for Alternative Politics (FAP) with the topic being “Ten years of United Revolutionary Movement in India”. By early morning more than 800 people were detained in various police stations in the city.
Some were detained straight away at the railway station as they descended from the trains. Of those arrested included the Convener of the Forum, revolutionary poet Vara Vara Rao, noted adivasi cultural activist Jeetan Marandi. Advocate Ravindranath, secretary of the CRPP regional chapter as well Advocate Ramaswamy, Joint Secretary were also detained as they were moving along with other civil libertarians to be part of the programme.
Other leaders such as Padma Kumari, C. Chandrasekhar, Varalaxmi, Kalyan Rao, Gadar and several others were also detained. The entire area surrounding the Sundarayya Vignana Kendram soon turned out to be a war zone with hundreds of armed police surrounding the area along with water canons ready. No one was allowed anywhere near the venue. Prof. Haragopal noted civil libertarian and public intellectual was denied an appointment with the Chief Minister K Chandrasekhara Rao as he was forcibly sent back. Little doubt, the Telangana government was desperate to stop the people from speaking their mind, at least for a day!
But such an arbitrary action, white terror to stifle political opinion had only triggered further indignation on this fascist authoritarianism of the government from different sections of the society! And what is that even conducting a seminar in an auditorium deliberating politics, be it revolutionary or radical, which has become a threat to this democracy? What is it that invited such a desperate action from the ruling classes? It is this potent fear of the ruling classes of the growing realization of the people that in the policies that fetch glory for the powers that be of the subcontinent, the broad sections of the people have seen their grave!
The prime minister of India in his address from the Red Fort on 15 August 2014 called for a moratorium, for ten years hence, to spell out in his own words, to “all contentious issues”. Narendra Modi, in other words, was calling for peace, to pave way for a much vigorous implementation of policies; of Liberalisation, Privatisation and Globalisation; all in the name of development, which Manmohan had failed to do for the sagging morale of the corporate money bags. But as the poet says, when the leaders speak of peace the common folk know that war is coming!
And it was this knowledge of the people, of the imminent danger to their lives and livelihoods, the politics of this loot and plunder as well as the possible alternatives that are there before them that the Forum for Alternative Politics wanted to deliberate on the 21 September. It was precisely that narrative and its revelation that the powers that be wanted to stifle, all in the name of law and order, peace, as claimed by the police chief of Hyderabad before the media!
It becomes significant that all progressive and democratic sections of the society come forward and condemn such fascist designs of the state to curb the fundamental rights of the people. As criminalization of dissent / political opinion is fast becoming the order of the day in an increasingly penal state that is India a united struggle for the rights of the peoples of the subcontinent becomes inevitable! In protest and in solidarity,
SAR Geelani President
Amit Bhattacharyya Secretary General
Rona Wilson Secretary, Public Relations

jueves, 18 de septiembre de 2014

GALIZA: Imaxes da campaña.


COMUNICADO CONXUNTO.



COMUNICADO CONXUNTO.
Con motivo de cumprirse, este 21 de setembro,  o 10º aniversario da constitución do Partido Comunista da India (maoísta) o Comité de Construción do Partido Comunista maoísta da Galiza e o Comité Galego de Apoio a Guerra Popular na India felicitan fraternalmente  aos comunistas da India, que unificados en torno as bandeiras vermellas do Marxismo-Leninismo-Maoísmo, levan adiante a Guerra Popular Revolucionaria para esmagar  todo ós monstruos que oprimen a os pobos da India.
Guerra Popular que hoxe, tense convertido na vangarda da Revolución Proletaria Mundial.
Apoiar a guerra popular na India é unha obriga de todo ós comunistas do mundo. Pois obriga é, de todo ós comunistas auténticos,  traballar pola revolución en todo ó mundo.
Apoiar a guerra popular na India é a  liña vermella que deslinda co oportunismo e o revisionismo. É  seguir consecuentemente a bandeira vermella do Internacionalismo Proletario.
Camaradas, os pobos oprimidos de todo o mundo miran con esperanza os vosos sacrificios heroicos, as vosas grandes vitorias, contra os reaccionarios opresores de todo tipo.
A camarilla reaccionaria Modi/Mukherjee  ten os días contados, a Revolución e imparábel pois conta co respaldo dos pobos da India e do mundo.
Viva o Partido Comunista da India (maoísta)e seu 10º Aniversario!
Viva o Secretario Xeral camarada Ganapathi!
Celebrar o 10º Aniversario da constitución do PCI (maoísta)!
Viva á Revolución Proletaria Mundial!
Galiza, 21 setembro do 2014
Comité de Construción do Partido Comunista maoísta da Galiza.
Comité Galego de Apoio a Guerra Popular na India.

martes, 9 de septiembre de 2014

INDIA: Free Hem Mishra !

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Court rejects bail plea of ‘Naxal’ Hem Mishra

A sessions court in Aheri has rejected the bail application of Hem Mishra, the first of the three alleged Naxals operatives from New Delhi to be arrested by the Gadchiroli police last year. The police had claimed to have arrested Mishra from the Aheri bus stand in Gadchiroli along with two aides of senior Naxal leader Narmada who were to lead him to Abujmaad forest to meet her. The court ruled that the police had enough material to establish a prima facie case of his involvement in Naxal activities.
Earlier, the Nagpur bench of Bombay High Court had denied bail to Delhi University professor G N Saibaba, who was the third person to be arrested by the Gadchiroli police after Mishra and Prashant Rahi. The police had claimed Rahi and Saibaba were arrested on the basis of leads secured during Mishra’s interrogation. Rahi was, however, granted bail by the High Court during the same hearing on the technical ground that the police hadn’t properly explained the documents submitted to it concerning Rahi. Interestingly, while the CPI (Maoist) had reportedly condemned the arrest of Saibaba and Rahi and a bid was made to bail them out, nobody, including any of Mishra’s relatives, had filed bail plea for Mishra. A few days ago, however, the bail plea was pushed by Surendra Gadling, the lawyer who had also argued for Saibaba and Rahi, on behalf of Rahi’s parents. Asked if Mishra would now move the High Court, Gadling said: “His parents will decide.”

domingo, 31 de agosto de 2014

CELEBRAR O 10º ANIVERSARIO DO PC DA INDIA (MAOÍSTA) !


O vindeiro 21 de Setembro  cumplese o 10º aniversario da constitución do Partido Comunista da India (Maoísta), resultado da unión do Partido Comunista da India (Marxista-Leninista) Guerra Popular e do Centro Comunista Maoísta (CCM).
O Partido Comunista da India (Maoísta), que leva a diante a Revolución de Nova Democracia a través da guerra popular, vai a celebrar este aniversario con diversas actividades e seus diversos comités e organizacions están a realizar preparativos para elo.
Reproducimos hoxe o cartaz editado polo Comité do Estado de Odisha do P C da India (Maoísta) que temos extraído do blog do Comité Internacional de Apoio a Guerra Popular na India http://icspwindia.wordpress.com/ e que Gran Marcha Hacia el Comunismo ten traducido ao español:
21 SETEMBRO 2014
Celebrar o 10º Aniversario do Partido Maoísta con Espíritu Revolucionario !
Derrotar a Operación Cacería Verde
Expulsar as Compañías Multinacionales da India
¡Construir as Loitas de Clases Antifeudales coa Consigna  “¡A Terra para quen a Traballa!”!
¡Expulsar as Compañías da Burguesía Burocrática Compradora que desplazan ao Pobo!
Comité do Estado de Odisha
PCI (Maoísta)

INDIA: NOTICIAS DA GUERRA POPULAR.


Nota – Presentamos a continuación recientes noticias sobre la guerra popular revolucionaria en la India que dirige el Partido Comunista de la India (Maoísta), que han sido extraídas de la web Signalfire http://www.signalfire.org/  las cuales Gran Marcha Hacia el Comunismo ha traducido al español:
LA GUERRILLA MAOISTA ANIQUILA A UN SUJETO EN SINGPURA
Jamshedpur – 29 Agosto 2014 – La agencia de noticias india PTI comunica que, según fuentes policiales, un hombre resultó muerto por disparos de guerrilleros maoístas en el mercado semanal de Singpura, subdivisión de Ghatsila, en Jarkhand.
800 ALDEANOS ACUDEN A UN MITIN DEL PC DE LA INDIA (MAOISTA) EN GARIKABANDA CONTRA EL PROYECTO MINERO DE BAUXITA
Visakhapatnam – 24 Agosto 2014 – Diversos medios de comunicación indios se hacen eco del mitin organizado por el Partido Comunista de la India (Maoísta) el 23 de agosto en Garikabanda, distrito de Visakhapatnam, AOB (Frontera Andhra-Pradesh) y al que acudieron unos 800 aldeanos de 25 pueblos. En el mitin, que duró unas cuatro horas, estuvieron presentes unos 30 maoístas y un número similar de miembros de la milicia maoísta. En el acto se exigió que el Gobierno retire su decisión de apoyar a las empresas mineras de bauxita y que se cancelen todas las licencias mineras. Según algunas fuentes, uno de los oradores maoístas señaló que el Gobierno trata de saquear los recursos naturales de las zonas tribales y en distintas intervenciones se llamó al pueblo a incorporarse a la guerra popular contra el Gobierno y las empresas multinacionales como Jindal y AnRak. También varios de los aldeanos tomaron la palabra y alzaron su voz contra los proyectos mineros de bauxita y afirmaron que estaban dispuestos a tomar las armas contra el Gobierno.
GUERRILLEROS MAOÍSTAS HIEREN A UN POLICIA JAWAN EN UN ENFRENTAMIENTO ARMADO EN BIJAPUR
Raipur – 24 Agosto 2014 – La agencia india de noticias PTI informa que un policía jawan miembro de la Fuerza Policial de la Reserva Central (FPRC) resultó herido en un enfrentamiento armado con guerrilleros maoístas en el distrito de Bijapur, en Chhattisgarh. El incidente tuvo lugar en el bosque de Lingapur cuando un grupo de paramilitares realizaba una operación contra la insurgencia maoísta en el interior de Basaduda, en Bastar Sur.
LA GUERRILLA MAOISTA ANIQUILA A UN INFORMADOR DE LA POLICIA EN CHERUKUBANDA
Visakhapatnam – 23 Agosto 2014 – Un grupo de guerrilleros maoístas penetró en la tarde del 21 de agosto en la colonia Killamkota, en Viskha Agency y sacaron de su casa a B Balaraju, trasladándole a la vecina aldea donde le aniquilaron por medio de disparos, informa la agencia de noticias TNN. Según diversas fuentes, tras aniquilar a Balaraju, los guerrilleros informaron a los aldeanos que se trataba de un informador de la policía.
MUERE UN GUERRILLERO MAOÍSTA EN UN ENFRENTAMIENTO CON LA POLICIA EN LOS BOSQUES BIRABHATI
Raipur – 22 Agosto 2014 – Según un despacho de prensa de la agencia informativa PTI, un guerrillero maoísta resultó muerto en un enfrentamiento con la policía en el los bosques de Birabhati, región de Bhejji del distrito de Sukma, de Bastar Sur en Chhattisgarh, a unos 500 km de la capital Raipur. El suceso se produjo cuando un equipo combinado de fuerzas represivas del régimen fascista indio compuestas por miembros de la Fuerza Policial de la Reserva Central (FPRC), Cobra (Batallón de Combate para Acción Resuelta) y policía del distrito llevaban a cabo una operación contra la guerrilla maoísta. Al aproximarse a los bosques de Birabhati y Jaggawaram, guerrilleros maoístas abrieron fuego sobre ellos y, tras un intenso combate armado, los guerrilleros se replegaron al interior del bosque. En la zona donde se produjo el enfrentamiento la policía encontró el cadáver de un guerrillero muerto vestido con uniforme junto con un rifle SLR.
LOS MAOÍSTAS BUSCAN NUEVAS BASES EN KERALA Y KARNATAKA
Nueva Delhi – 22 Agosto 2014 – “Según informes elaborados por un oficial superior del Ministerio del Interior indio, el PC de la India (Maoísta) está tratando enérgicamente de establecer nuevas bases en la frontera de Kerala y Karnataka”, señala un  artículo firmado por Manan Kumar que publica la web informativa DNA India. Y añade: “El informe basado en noticias recabadas por el Buró de Inteligencia, interrogatorios a dirigentes detenidos y documentos maoístas capturados, el PC de la India (Maoísta) está esforzándose por establecer una ruta forestal desde el distrito de Wayanad en Kerala hasta el distrito de Mysore en Karnataka. Esto puede considerarse como que los maoístas tratan de reconstruir su Comité Zonal Sur Occidental, en la triple conjunción Kerala-Tamil Nadu-Karnataka”.
GUERRA DE PROPAGANDA ENTRE LOS MAOÍSTAS Y LA POLICIA EN BASTAR
Raipur – 20 Agosto 2014 – Según la web del periódico The Hindu, la región de Bastar en Chhattisgarh está siendo testigo de una guerra de propaganda entre los insurgentes maoístas y la policía, acusándose mutuamente de haber infligido importantes bajas al contrario. Así, el PC de la India (Maoísta) ha afirmado que su Ejército Guerrillero de Liberación Popular (EGLP) habría aniquilado a 6 comandos del Comando Batallón para Acción Resuelta (COBRA) de la Fuerza Policial de la Reserva Central (FPRC) en un enfrentamiento ocurrido el 10 de agosto en el distrito de Bijapur. Según una nota de prensa redactada a mano firmada por el Comité Regional de Bastar Sur del PC de la India (Maoísta), el EGLP aniquiló a 6 comandos COBRA e infligió serias heridas a otros 4 en un enfrentamiento cerca de la aldea Pawarguda en el distrito de Bijapur. "Un partida de la policía se apoderó de los cadaveres de los jawanes heridos pero la policía y la administración del distrito han permanecido en silencio sobre el incidente. No se ha confirmado aún si los cadáveres fueron entregados a sus familias”, añade el comunicado que  además llama al personal de seguridad a “cesar sacrificar sus vidas por los capitalistas”. “No peleéis por los capitalistas e  imperialistas. Por el contrario, uníos al movimiento popular” dice el comunicado.
LA GUERRILLA MAOÍSTA ATACA UN HELICÓPTERO GUBERNAMENTAL EN BASTAR SUR
Raipur – 20 Agosto 2014 – Un helicóptero del Gobierno del Estado de Chhattisgarh fue atacado por la guerrilla maoísta mientras volaba  entre Pamed y Bhadrakali, en la región montañosa de Bastar Sur del distrito de Bijapur, logrando escapar con ligeros daños, informó un oficial de la policía, noticia que recoge la web del periódico indio Deccan Chronicle. El incidente se produjo en la tarde del 18 de agosto y la noticia no fue difundida hasta dos días más tarde “por razones de seguridad”. Tras aterrizar en la base de Jagdalpur se comprobó que había una marca de bala en su cola. Según la policía, este es el tercer ataque de la guerrilla maoísta contra un helicóptero en Bastar en lo que va de año.
TRES POLICIAS JAWANS HERIDOS EN UN ENFRENTAMIENTO ARMADO CON GUERRILLEROS MAOISTAS EN DANTEWADA
Raipur – 19 Agosto 2014 – La web informativa india Zee News informa que tres policías jawans del Batallón Comando para Acción Resuelta (COBRA) resultaron heridos en los bosques de Kodanar, distrito de Dantewada en Chhattisgarh cuando un grupo de guerrilleros maoístas abrió fuego contra ellos.
ENFRENTAMIENTO ARMADO ENTRE GUERRILLEROS MAOISTAS Y POLICIAS EN SAMARBAGH
Medinnagar (Jharkhand) – 18 Agosto 2014 – Un enfrentamiento armado entre guerrilleros maoístas y policías tuvo lugar en Samarbagh, distrito de Palamau en Jarkhand, informa la web de la revista india Outlook. Según la policía los guerrilleros maoístas habrían penetrado desde el vecino distrito de Aurangabad, Bihar, y se encontraban en la aldea de Samarbagh cuando fueron sorprendidos por miembros de la Fuerza Policial de la Reserva Central (FPRC) que rodearon la aldea. Los guerrilleros maoístas respondieron con disparos y el enfrentamiento armado duró una hora y media aproximadamente, logrando escapar. Según la policía el grupo de guerrilleros maoístas estaría dirigido por el comandante guerrillero Manohar Ganju y tras el combate la policía intervino tres rifles incluido un fusil 303,15 cartuchos, media docena de lámparas solares, cargadores de móviles, un uniforme y alimentos.
GUERRILLEROS MAOISTAS ANIQUILAN A UN INFORMADOR DE LA POLICIA EN HESAKOCHA
Jamshedpur – 18 Agosto 2014 – Según informa la web del periódico indio The Avenue Mail, un grupo de guerrilleros maoístas penetró en la aldea de Hesakocha, en Chandil, Jharkhand, en la noche del 16 de agosto y aniquiló a Jagran Manjhi, de 50 años. Tras aniquilarle, los guerrilleros maoístas colocaron carteles sobre su cadáver informando que se trataba de un informador y Oficial de la Policía Especial (SPO).
MUERE UN OFICIAL DE LA POLICIA ESPECIAL EN UN ENFRENTAMIENTO CON GUERRILLEROS MAOISTAS EN ODISHA DURANTE EL BANDH CONVOCADO POR EL PCI (MAOISTA)
Bhubaneswar – 16 Agosto 2014 – Guerrilleros maoístas fueron los autores de la muerte por disparos de N Munda, Oficial de la Policía Especial (SPO) en Bandhagaon, cerca de Rourkela, en Odisha, informa la web Odisha Diary. Los maoístas colocaron una bandera negra cerca del cadáver. El bandh (huelga general) convocado por los maoístas afectó la vida diaria en el distrito de Malkangiri, donde cesó el tráfico de autobuses y cerraron los comercios. Banderas negras colocadas por maoístas con ocasión del 15 de Agosto, Día de la Independencia de la India y que el PC de la India (Maoísta) califica como “Dia Negro”, aparecieron en diversos lugares del distrito incluido el Centro Escolar Kalimela y otras instituciones educativas, que fueron retiradas por la policía.
CHOQUE ARMADO ENTRE LA GUERRILLA MAOISTA Y LA POLICIA EN NARAYANPUR
Raipur - 16 Agosto 2014 – Fuentes policiales afirman haber dado muerte “a al menos tres o cuatro maoístas” en el distrito de Narayanpur de Chhattisgarh Sur, noticia que recoge la web del periódico The Hindu. Al parecer un grupo de policías que realizaban un ejercicio cerca de la aldea de Horna cuando fueron tiroteados por guerrilleros maoístas. Según la policía los guerrilleros se retiraron al bosque y  “vieron a los guerrilleros llevar cuerpos heridos al bosque. Por la sangre encontrada en el lugar y la literatura maoísta secreta encontrada, que los maoístas nunca abandonan, podemos afirmar que varios de ellos resultaron muertos”. Sin embargo la policía no encontró ningún cadáver.
LA GUERRILLA MAOISTA EXPLOSIONA  UN ARTEFACTO  EN UNA CARRETERA EN MALKANGIRI
Bhubaneswar – 14 Agosto 2014 – La agencia de noticias IANS comunica que un artefacto explosivo colocado por la guerrilla maoísta hizo explosión en una carretera cerca de la zona de Telarai, distrito de Malkangiri, en Odisha. Según la policía el artefacto tenía como objetivo a las fuerzas de seguridad del régimen fascista indio con motivo del boicot a las celebraciones del Día de la Independencia convocado por el PC de la India (Maoísta).
MUEREN DOS GUERRILLEROS MAOISTAS EN UN ENFRENTAMIENTO CON LA POLICIA EN LA JUNGLA DE KHOBRAMENDA
Nagpur – 13 Agosto 2014 – Dos guerrilleros maoístas, Krishna Thakur alias Camarada Raju (35) y Sonu Katenge alias Camarada Dasrath (25) resultaron muertos en un enfrentamiento con la policía ocurrido el 12 de agosto en la jungla de de Khobramenda, en Gadchiroli Norte, Estado de Maharashtra. Según la policía, ambos guerrilleros eran escoltas del dirigente y miembro del Comité Central del PC de la India (Maoìsta) Milind Teltumbde, siendo Dasrath subcomandante del pelotón número 56 del Ejército Guerrillero de Liberación Popular (EGLP). En el lugar del suceso la policía se incautó de un rifle 303, otro rifle SLR, una pistola  y una mochila, entre otro material.
CIENTOS DE PERSONAS PARTICIPAN ENUN MITIN EN LOS BOSQUES DE MARIGETA ORGANIZADO POR EL PC  DE LA INDIA (MAOISTA) CON MOTIVO DEL “DIA NEGRO”
Koraput – 12 Agosto 2014 – Un despacho de la agencia TNN informa que miembros del PC de la India (Maoísta) y centenares de simpatizantes participaron en un mitin el domingo 12 de agosto en los bosques de Marigeta, distrito de Malkangiri, en Odisha, para celebrar lo que denominan el “Dia Negro” [15 de Agosto Día de la Independencia para la burguesía]. Los maoístas llamaron a los asistentes a cooperar en las actividades programadas para el “Día Negro”. También los maoístas exigieron la retirada de las fuerzas centrales  de la policía y la libertad de personas de las tribus inocentes y acusadas de ser maoístas. Después del mitin los maoístas se dirigieron a Bodigeta gritando consignas.
MUERE UN POLICIA EN UN ENFRENTAMIENTO ARMADO CON LA GUERRILLA MAOISTA EN BIJAPUR
Raipur – 9 Agosto 2014 – Según la agencia de noticias PTI un policía jawan de la Fuerza Policial de la Reserva Central (FPRC) resultó muerto en un enfrentamiento armado con guerrilleros maoístas en la aldea de Murdanda, distrito de Bijapur, en Chhattisgarh.
DOS SUBINSPECTORES DE POLICIA HERIDOS AL SER ATACADOS POR GUERRILLEROS MAOISTAS EN GADCHIROLI
Nagpur – 6 Agosto 2014 – Dos subinspectores de policía destacados en la comisaría de policía de Sawargaon resultaron heridos al ser atacados con armas de fuego por un grupo de unos 40-50 guerrilleros maoístas en la división administrativa de Dhanora, distrito de Gadchiroli en Maharashtra, informa un despacho de la agencia india de noticias PTI.

lunes, 11 de agosto de 2014


Intelectuais indianos movilizanse en apoio de Jonathan Baud


Activists launch initiative for release of Swiss youth

THRISSUR: A group of pro-Left intellectuals and human rights activists has launched an initiative for the unconditional release of Jonathan Baud, the Swiss youth arrested by Kerala police for alleged Maoist links. They will organise a convention here on August 6 to press the demand. Efforts are also on to appeal to the international and national academic and political community to press the Kerala government to drop charges against Baud. Activists said there was no legal or political ground for Baud’s detention as he was not engaged in any subversive underground act. “Police have not been able to find any clinching evidence so far to establish his alleged Maoist links,” Gandhian thinker and social activist K Aravindakshan said.
Police, however, have not listed Maoist links in the remand report. Officers also admit that no additional evidence has been extracted to support the allegation during his interrogation in custody. The organisers of the meeting, attended by Baud, said he had just introduced himself after the meeting and shared his sympathies. Committee for the Release of Political Prisoners vice-president M N Ravunni, who presided over the meeting, said the government was according VIP treatment to Italian marines accused of killing Indian fishermen while using repressive laws to intimidate Baud. Poet and former Sahithya academy secretary K Satchidanandan said the arrest was violation of human rights.
“There is no law in the country that proscribes a person who arrived in the country on tourist visa from attending a meeting. He was not a speaker there; he is well known in the French academic circles and has made important contribution to the intellectual culture.He respects Communist views, but is in no way engaged in any underground subversive act,” he said over phone from New Delhi. However, historian M G S Narayanan said it was difficult to believe that a Swiss national would attend a meeting of the Left and Maoist sympathizers in Kerala without some local links. “I’m ready to wait, let’s see whether the police are able to collect some evidence,” he said. Swiss mission officials in India have been collecting details on Baud’s arrest but had not officially demanded his release so far.
http://timesofindia.indiatimes.com/City/Kozhikode/Activists-launch-initiative-for-release-of-Swiss-youth/articleshow/39651718.cms

martes, 27 de mayo de 2014

Noticias no Hindustan Times do 15 de maio



Four days after he was arrested by the Maharashtra Police for alleged links with Maoists, Delhi University teacher GN Saibaba is planning to go on a hunger strike from Thursday. Saibaba’s brother Ramdev said that he was being kept in highly unsanitary conditions.
According to a letter written to officials at the central prison, Ramdev met Saibaba in jail on May 12 where he was informed of the condition he was being kept in.
“I came to know that he was kept in solitary confinement, not allowing anyone to help him,” the letter states.

Read: Cops get 14-day custody of DU professor GN Saibaba
Ramdev has requested that Saibaba be provided with two assistants since his 90% locomotor disability restricted him from conducting even daily activities such as using the toilet.
Delhi University teachers along with representatives from various other civil society organisations on Wednesday demanded that Saibaba be released immediately.
The main issue raised by colleagues and family members was that Saibaba was allegedly not being given medication regularly.
He suffers from hypertension as well as heart ailments. He also suffers from chronic backache since his disability puts a lot of pressure on his spine.

Read: Maharashtra cops likely to oppose DU prof GN Saibaba’s bail
“The conditions that Sai has been confined in are deplorable. He is in solitary confinement when he clearly needs attendants, he is not being given his medication and he is being forced to live in indignity. This amounts to torture,” said Karen Gabriel, who teaches English at Delhi University.
Former chief justice of the Delhi High Court, Rajinder Sachar said that it seemed that the arrest was illegal.
“It is a shame that Saiwas arrested from the university premises and the university has not spoken out against it. On behalf of People’s Union for Civil Liberties, I demand that Sai be released immediately,” Sachar said. Others pointed out how several others who had raised their voice in support of tribal and land rights were earlier harassed. “It has been seen that when allegations of being Maoists are leveled on people, human rights become irrelevant. We have to look at cases against SAR Geelani, Iftikar Geelani and Binayak Sen, all of who were acquitted, to know that they were picked up for dissenting only,” said Nanadita Narain, president of the Delhi University Teachers’ Association.

LIBERTADE PARA O PROFESOR G.N. SAIBABA E SEUS COMPAÑEIROS !


Compañeira, compañeiro descarga a foto e fai autocolantes e cartacez !
Libertade para o  profesor Saibaba e seus compañeiros !

domingo, 11 de mayo de 2014

A policia secuestra ao profesor G.N. Saibaba. Urxente solidariedade internacional !



Dr. GN Saibaba clandestinely abducted by Maharashtra Police. Urgent International Solidarity!

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Statement from Revolutionary Democratic Front – May 9, 2014

Today, the 9 of May, plain-clothed personnel of the Maharashtra Police abducted Dr. GN Saibaba while he was returning home from Daulat Ram College in Delhi University after examination duty. Dr. Saibaba, who suffers from 90% disability and is on a wheelchair, was blindfolded and pushed into a vehicle. After this secretive arrest of Dr Saibaba from within the university premises, it is believed he is being taken to Gadchiroli in Maharashtra by flight. None of his family members were informed and after repeated efforts to contact him, the driver of his vehicle informed the family of his abduction. This stealthy and dastardly abduction of a university professor smacks of the desperation of the Maharashtra police and violates the basic human right of an upstanding, democratic voice in this country. This abduction, it is believed, to be with regards to a fabricated case filed by the Maharashtra police that subsequently conducted a raid and an interrogation at Dr. Saibaba’s residence on the 12th of September and 7th of January respectively. During both the raid and the interrogation, Dr. Saibaba and his family extended their full cooperation with the police and intelligence forces. This abduction by Maharashtra Police reflects the extent to which the police can stoop to rake up false charges in fabricated cases and implicate voices that speak up for the democratic rights of people.
President of RDF in Uttarakhand, Jeevan Chandra, was similarly picked up on 5th of May in Uttarakhand. The charges against him were that of having connections with the Maoists and calling for the boycott of the elections. RDF strongly condemns the abduction of Dr. Saibaba and the abduction and arrest of Jeevan Chandra by the police force.
RDF calls for a protest demonstration at Maharashtra Sadan

PROTEST DEMONSTRATION
against clandestine abduction of Dr. GN Saibaba by Maharashtra Police
Maharashtra Sadan
Kasturba Gandhi Marg
10th May (SATURDAY) at 11 am.



Press Release by Delhi University Teachers
Against the arbitrary arrest of Prof. G N Saibaba
Dr. G N Saibaba, Assistant Professor at Ramlal Anand College, Delhi University, was abducted by the Maharashtra police today, 9th May around 1.00 PM. He was in the Daulat Ram College for examination duty. The incident came to light when Vasantha, Prof. Saibaba’s wife, got a mysterious call around 3 p.m., informing her that her husband is being taken to Gadhchiroli by the Maharashtra police. There is otherwise no official intimation from the police about his arrest or charges against him so far. His driver and the car also were missing for several hours after that.
Vasantha, accompanied by Delhi University teachers, lodged a missing person complaint at the Maurice Nagar police station an hour later. Maurice Nagar police has now confirmed that Maharashtra Police came with a non-bailable warrant against Dr. Saibaba. Later, Dr. Saibaba managed to get hold of a cell-phone from someone at the airport and speak briefly to his daughter, before the phone was snatched away from him. He confirmed that he was inside the Delhi airport and being taken to Nagpur by the Gadchiroli police.
Dr. Saibaba has been facing harassment and intimidation since the last one year. His house was raided and his personal belongings taken away in the name of investigation. Clearly there is an attempt to frame him up. The Delhi University Teachers Association have earlier denounced these attempts by the police. Now the police have acted without any prior information and abducted Dr. Saibaba.
Prof. Saibaba suffers from 90 per cent disabilities and is strapped onto a wheelchair. To harass and intimidate him like this is a gross violation of his basic human rights.
We strongly condemn this arbitrary and illegal action by the police in connivance with the University authorities. This is an attempt to stifle voices of dissent and suppress those who have been vocal against injustice and oppression.
earlier message received from activists in Delhi
Prof. G.N. Saibaba, faculty at DU and Joint Secy of Revolutionary Democratic Front was abducted today by the Maharashtra police when he was returning from his college. Without even informing anyone, the police has already taken him to the airport to fly him to Maharashtra. There is a press conference at his residence (Gwyer Hall Hostel warden flat) today at 5.30 pm condemning this police abduction. Please join the press conference. For the last one year the police has been trying to implicate him in absolutely absurd and false charges. To prepare grounds for this, there was first the most vicious media trial against him, followed by a police raid at his residence last year and then police landing him to interrogate him early this year. Now he has been abducted in this surreptitious manner. Condemn and protest against this dastardly police act