jueves, 11 de diciembre de 2014

DECLARACÍON DO CIAGPI.

POÑAMOS EN PRACTICA AS IMPORTANTES DECISIONS DO ENCONTRO INTERNACIONAL DO CIAGPI DO 27 E 28 DE SETEMBRO EN ITALIA! 
¡NOVOS PASOS IMPORTANTES!
   
O Comité Internacional de Apoio a Guerra Popular na India ten adoptado tres tarefas:
*Publicación de todas-las intervencions e mensaxes ao Encontro, lo antes posible – Realizado
*Un novo Día Internacional de Apoio a Guerra Popular nos vindeiros meses
Tense acordado tres Días Internacionais de Acción : 29, 30 e 31 de Xaneiro do 2015 , contra a Operación Cacería Verde, contra o réxime fascista de  Modi, en defensa da vida e das condicions no que atopanse os presos políticos e en apoio a Guerra Popular na India
29 de Enero:
Contra as compañías indias e os negocios económicos da burguesía imperialista india.
30 de Enero
Diante das embaixadas e consulados da India
31 de Enero
Reunions en apoio a Guerra Popular na India
*Intensificar a preparación da Delegación Internacional a India
Conversaciones o 13 de Decembro en Italia impulsarán sua preparación
Outras decisions:
Unir a campaña en pro dos presos políticos na India a todas-las campañas en curso en favor dos presos políticos no mundo
Novas declaracions e accions no mundo -Brasil-Francia-Italia-Palestina- contemplarán a participación do CIAGPI – As conversacions do 13 de Decembre en Italia establecerán un calendario.
Desenrrolar iniciativas específicas nas fábricas de empresas multinacionais da India, particularmente en Europa, para crear un lazo internacionalista entre os traballadores dos países imperialistas e os traballadores indios.
29 de xaneiro – Un dos tres días internacionais de acción no mundo
Aceptar a propuesta de apoiar un llamamento as mujeres para unha ponte entre o movemento das mulleres e a loita das mulleres na Guerra Popular
Un paso importante se llevará  a cabo el año que viene



Comité Internacional de Apoyo a la Guerra Popular en la India
Decembro 2014

lunes, 8 de diciembre de 2014

INDIA: Chamado do PCI (maoísta) en apoio a loita da clase obreira.

Press statement- support the All India protests of Working class 5 Dec. 2014- OSC CPI (maoist)


भारत की कम्युनिस्ट पार्टी  (माओवादी)
ओड़िशा राज्य कमेटी
प्रवक्ता- शरतचंद्र माझी    प्रैस स्टेटमेंट दिनांक- 18 नवंबर 2014
5 दिसंबर 2014 को मजदूर प्रदर्शनों का हम समर्थन करते हैं
नरेंद्र मोदी की साम्राज्यवाद, बड़े पूंजीपतियों के हक में किये गये 'श्रम सुधारों' के विरुध लड़ाकू संघर्षों का निर्माण करो. शासक वर्गिय व दलाल ट्रेड युनियनों से सावधान रहो.
जीना है तो मरना सीखो - कदम-कदम पर लड़ना सीखो.
5 दिसंबर 2014 को देश की विभिन्न ट्रेड युनियनों, मजदूर युनियनों ने नरेंद्र मोदी की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ, श्रम कानूनों में पूंजीपतियों के हक में बदलावों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनों का निर्णय लिया है. हमारी भाकपा (माओवादी) की ओड़िशा राज्य कमेटी पूरी तरह से देश के मजदूरों के साथ खड़ी है. उनकी तमाम जायज मांगों का समर्थन करती है. ओड़िशा के तमाम किसानों, कर्मचारियों, व्यापारियों, छात्र-बुद्धिजीवियों से अपील करते हैं कि अपने-अपने काम बंद करके मजदूरों के प्रदर्शनों, रैलियों, जुलूसों में भागीदारी करे.
संशोधन बिल 2014 (एपरेंटिटिस) लोकसभा में 10 अक्तुबर को पास हो गया है। जुलाई में फेक्ट्री एक्ट, लेबर एक्ट भी पास हे चुके हैं। इसके बाद महिलाओं का रात की पालियों (शिफ्टों) में काम करना लागू हो जायेगा। ओवर टाईम के घंटे दो गुने हो जायेंगे। कोई भी कंपनी मजदूरों से 12 घंटों तक काम ले सकेगी। कंपनियां स्थाई मजदूरों की जगह ज्याद से ज्यादा प्रशिक्षू मजदूरों को काम पर रख सकेगी।
मोदी सरकार ने देशी-विदेशी लुटेरों के लिए “अच्छे दिन” लाने के अपने वादे को निभाने के लिए उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा, यानी देश में मज़दूरों के अधिकारों की थोड़ी-बहुत हिफ़ाज़त करने वाले श्रम क़ानूनों को भी किनारे लगाने की शुरुआत कर दी है।
करीब 25 वर्ष पहले जब उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को बड़े पैमाने पर लागू करने की शुरुआत हुई तभी से पूँजीपतियों की संस्थाएँ और उनके भाड़े के क़लमघसीट पत्रकार और अर्थशास्त्री चीख़-पुकार मचा रहे हैं कि श्रम क़ानूनों को 'लचीला' बनाया जाना चाहिये
श्रम क़ानूनों को लागू करवाने वाली संस्थाओं को एक-एक करके इतना कमज़ोर और लचर बना दिया गया है कि क़ानून के खुले उल्लंघन पर भी वे कुछ नहीं कर सकतीं। लेकिन इतने से भी पूँजीपतियों को सन्तोष नहीं है। वे चाहते हैं कि मज़दूरों को पूरी तरह से उनके रहमो-करम पर छोड़ दिया जाये। जब जिसे चाहे मनमानी शर्तों पर काम पर रखें, जब चाहे निकाल बाहर करें, जैसे चाहे वैसे मज़दूरों को निचोड़ें, उनके किसी क़दम का न मज़दूर विरोध कर सकें और न ही कोई सरकारी विभाग उनकी निगरानी करे।
अब देश के सारे बड़े लुटेरों ने (अडानी, अंबानी, टाटा, बिरला, जिंदल, मित्तल, एस्सार आदि) मिलकर मोदी सरकार बनवायी इसीलिए है ताकि वह हर विरोध को कुचलकर मेहनत की नंगी लूट के लिए रास्ता बिल्कुल साफ़ कर दे। अपने को ‘मज़दूर नम्बर 1’ बताने वाला नरेन्द्र मोदी फ़ौरन इस काम में जुट गया है।
मज़दूरों के लिए यूनियन बनाना और भी मुश्किल कर दिया गया है। मूल क़ानून के अनुसार किसी भी कारख़ाने या कम्पनी में 7 मज़दूर मिलकर अपनी यूनियन बना सकते थे। फिर इसे बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया। यानी किसी फैक्टरी में काम करने वाले मज़दूरों का कोई ग्रुप अगर कुल मज़दूरों में से 15 प्रतिशत को अपने साथ ले ले तो वह यूनियन पंजीकृत करवा सकता है। मगर अब इसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है। मतलब साफ़ है कि अगर फैक्टरी मालिक ने अपनी फैक्टरी में दो-तीन दलाल यूनियनें पाल रखी हैं तो एक नयी यूनियन बनाना बहुत कठिन होगा और फैक्टरी जितनी बड़ी होगी, यूनियन बनाना उतना ही मुश्किल होगा।
एक और ख़तरनाक क़दम के तहत इण्डस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 में संशोधन करके अब कम्पनियों को 300 या इससे कम मज़दूरों को निकाल बाहर करने के लिए सरकार से अनुमति लेने से छूट दे दी गयी है, पहले यह संख्या 100 थी। यानी अब किसी पूँजीपति को अपनी ऐसी फैक्टरी जिसमें 300 से कम मज़दूर काम करते हैं, को बन्द करने के लिए सरकार से पूछने की ज़रूरत नहीं है।
फैक्टरी से जुड़े किसी विवाद को श्रम अदालत में ले जाने के लिए पहले कोई समय-सीमा नहीं थी, अब इसके लिए भी तीन साल की सीमा तय कर दी गयी है। और बेशर्मी की हद यह है कि ये सब “रोज़गार” पैदा करने तथा कामगारों की काम के दौरान दशा सुधारने तथा सुरक्षा बढ़ाने के नाम पर किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि इससे ज़्यादा निवेश होगा तथा ज़्यादा नौकरियाँ पैदा होंगी। असल में कहानी रोज़गार बढ़ाने की नहीं, बल्कि पूँजीपतियों को मज़दूरों की लूट करने के लिए और ज़्यादा छूट देने की है। ये तो अभी शुरुआत है, श्रम क़ानूनों को ज़्यादा से ज़्यादा बेअसर बनाने की कवायद जारी रहने वाली है.
हम तमाम मजदूरों से अव्हान करते हैं कि वह मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की राह पर अपना आंदोलन तेज करें. अब तक शासक वर्गिय व दलाल ट्रेड युनियनों मजदूर आंदोलनों के साथ धोका ही किया है. केवल एक दिन की हड़ताल या प्रदर्शनों से मजदूरों को अपने असली हक नहीं मिल सकते, मजदूरों के श्रम की लूट नहीं मिट सकती. देश को साम्राज्यवाद, बड़े पूंजीपतियों व सामंतवादियों को उखाड़ कर ही आपकी सच्ची मुक्ति संभव है. माओवादी पार्टी आपसे आव्हान करती है कि उठो और पूरी व्यवस्था को चुनोती दे दो. ये कल कारखाने, फेक्ट्रियां, कंपनियां आपके खून पसीने बनी हैं, इन पर केवल और केवल आपका ही अधिकार है.
देश में आदिवासी-किसान हमारी पार्टी के नेतृत्व में अपने जल-जंगल-जमीन के लिये, साम्राज्यवाद, सांतवाद व दलाल नौकरशाह पूंजिपतियों को उखाड़ कर नव जनवादी भारत के निर्माण के लिये लोकयुध्द के पथ पर आगे बढ़ रही है. वह लड़ाई आपकी भी लड़ाई है. आपरेशन ग्रीनहंट के तीसरे चरण को चालू कर अपने ही देश की जनता पर मोदी ने नाजायज युध्द को और तेज कर दिया है. मोदी की का ग्रीनहंट हर उस व्यक्ति के खिलाफ है जो उसके खिलाफ बोलेगा, जो पूंजी की लूट के आड़े आयेगा, इसलिये यह आपके ऊपर भी युध्द है. हम पूरे मजदूर वर्ग से अपील करते हैं कि व्यापक रुप से एकजुट होकर इसका विरोध करे.
नरेंद्र  मोदी के सारी नाटकीय भाषणगिरी साम्राज्यवादी कारपोरेट घरानों का हित साधने वाली है. साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण की नीतियों को पहली सरकारों से ज्यादा अक्रामक रूप से लागू कर रही है. जनता से अपील है कि उसके मोहजाल में मत फसे. उसकी असलियत को पहचान कर उसकी जन विरोधी नीतियों का मुंहतोड़ जवाब दें.
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
प्रवक्ता
शरतचंद्र माझी
ओड़िशा राज्य कमेटी
भाकपा (माओवादी)

domingo, 7 de diciembre de 2014

INDIA: Emboscada do EGPL deixa 14 mortos e 15 feridos entre paramilitares perto de Raipur.





correovermello-noticias
Nova Delhi, 1.12.14
Según informan axencias internacionais, unha emboscada do Exercito Guerrilleiro Popular de Liberación, no distrito de Sukma no estado de Chhattisgarh, contra forzas da para-militar CRPF ha costado a vida a 14 efectivos gubernamentais, incluidos dous oficiais ao mando da unidade. Outros 15 efectivos resultaron feridos no mesmo combate. Non se reportan baixas nas forzas revolucionarias que capturaron un importante numero de armas automaticas equipamentos e munición das CRPF.
A unidade reaccionaria participaba nunha operación contra bases maoístas nos bosques do distrito de Sukma a 450 km da capital Raipur.